JEEWAN SANGEET

Saturday, June 19, 2010

आया हूँ अपने गाँव में

बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ, अपने गाँव में .
स्वच्छ हवा से हर्षित है मन
हूँ बरगद की छाओं में ..

नहीं उमस से मन घबराता
सहज हरापन मन को भाता
काले बादल उमड़-घुमड़कर
मुझे रिझाते छाओं में . .

सतरंगा सुन्दर पनसोखा
दिखलाता है दृश्य अनोखा
कदवा किये हुए खेतों में
रोपनी होती गाँव में .
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में . .

फर्दो तट का दृश्य सुहाना
तैर-तैर कर नित्य नहाना
तोड़ मकई के बाल खेत से
ओरहा खाना गाँव में .
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में . .

खेल कबड्डी, चिक्का, कुश्ती
आपस की वह धींगा मुश्ती
सुखद चांदनी, झिन्झरी जल में
याद आ रही गाँव में
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में

जगत साथ देगा

ज़माना सदा ही रहा साहसी का
बढ़ो कर के हिम्मत, जगत साथ देगा .

पहले तू अपनी कहो खुलके मंशा
समझ मंशा जगत साथ देगा .
अगर लोकमंगल की मंशा तुम्हारी
तो आगे बढ़ने में जग साथ देगा . .

न झल्को भाई तू अपनी लाचारी
दिखलाओ क्षमता जगत साथ देगा . .
चलता रहेगा पकड़ धार जग यह
समय का विहंगम भी उड़ता रहेगा .

अगर है नयी कल्पना जिंदगी की
जगत साथ चलने को तत्पर रहेगा . .
गधो कोई सपना मनुजता का नूतन
बढ़ो करके साहस जगत साथ देगा . .

नहीं चला मैं उन राहों पर

अनचाहे पथ का मैं राही
आज भला क्या, कभी नहीं था .
नहीं चला मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .

भूल गया मैं उन राहों को
जिनपर थी मुस्कान न बिखरी
लौट नहीं ताका उस घर पर
जिस पर कोई किरण न निखरी . .

व्यर्थ कंही पर समय बिताना
छोटी बातों में फंस जाना
मेरे लिए कान्हा था संभव
डूब भावना में बह जाना . .

सदा सचेत रहा जीवन में
गया वंही कर्तब्य जंहा था
उनसे दूर रहा जीवन भर
जिन्हें समय का ज्ञान नहीं था . .

कुछ उल्लेख्य करू जीवन में
मेरा बस मनतब्य यही था
चला नहीं मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .

Friday, June 18, 2010

आज जो मैं लिख रहा

आज जो मैं लिख रहा हूँ, जान लो
वह अमर कल भी, हमेशा ही रहेगा . .

इस मही पर सृजन पथ जबतक रहेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .
हर प्रलय को सृजन ही देगी चुनौती
सृष्टि के संग क्रम यही चलता रहेगा . .

प्रलय की चिंता न कोई भी करे
सृजन का यह चक्र चलता ही रहे
भाव-सरिता को बहा सागर बना दो .
पत्थरों को फोड़कर निर्झर बहा दो . .

राह से गुमराह करते लोग मिलते ही रहेंगे
और रोड़े भी निरंतर राह में मिलते रहेंगे
किन्तु सर्जक स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .
साहसी निज स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .

लेखनी से बांध गया नाता सुनहरा
यह दिनोदिन हो रहा है सतत गहरा .
जिंदगी के साथ लेखन भी चलेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .

मैं अकेला हो गया हूँ

रो रहा क्यों व्यर्थ रे मन
कौन अपना है यंहा पर .
मिट गयी हस्ती बड़ों की
है हमारी क्या यंहा पर .

सबको अपनी ही पड़ी है
चल रहे सब भावना में
स्वप्न सब बिखरे पड़े जब
है कान्हा कुछ कल्पना में . .

स्वर्ग-सुख के मोह में आ
नरक में मैं बस गया हूँ .
आज जग के जाल में कुछ
बेतरह मैं फंस गया हूँ . .

नाव तो मंझधार में फंस
धार की आश्रित हुई  है
दूर दोनों तट हुए है
और मंजिल खो गयी है .

कौन देगा साथ मेरा
यह प्रबल चिंता सताती . .
मैं अकेला हो गया हूँ
अब नहीं विश्वास थाती . .

घर मेरा इतिहास होगा

हो अकेला खो गया हूँ
शहर के भीषण भवंर में .
मन नहीं लगता यंहा पर
कैद हो रोता नगर में . .

चाहकर न लौट सकता
ग्राम जीवन पा न सकता
खड़ा पुरखों का महल
पर हूँ अकेला जा न सकता . .

भूत का कहकर बसेरा
कोई भी रहता न घर में .
दर्शनीय था कभी जो
आज बदला खंडहर में . .

गिर पड़ेगा,   देह होगा
कोई कब्ज़ा कर रहेगा
याद में बस शेष रहकर
घर मेरा इतिहास होगा . .

Thursday, June 17, 2010

मेरा सपना

मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा .

अलग-थलग की बात कभी न होगी
छल-प्रपंच की बातें बुरी न होगी
सब होंगे इंसान न अंतर होगा .
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . १ . .

मंदिर-मस्जिद अलग कभी न होगा
इश्वर हित संघर्ष न मन में होगा
बाहर भीतर भेद न कोई होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . २ . .

होगी एक ही शिक्ष सुन्दर सबकी
एकरूप मानवता होगी सबकी
बात-बात पर झगडा कभी न होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . ३ . .

जब सब उर में प्यार छलक आएगा
स्वार्थों का सब द्वीप डूब जायेगा
जगत कुटुंब रूप एक तब होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . .

न एक-सा समय रहा

न एक-सी जगह सभी
न एक-सा समय रहा
न संगी एक-सा मिला
न प्रेम एक-सा रहा . .

न राह एक-सी रही
न चाह एक-सी रही
न भाव एक-सा रहा
न बात एक-सी रही . .

न लक्ष्य को पकड़ सका
न मन एकाग्र कर सका
न राह को बदल सका
न भाव को कुचल सका ..

न बात दिल की कह सका
न बात दिल की सुन सका
न मैं ह्रदय बदल सका . .

न अंह मुक्त हो सका
न कलुष-पाप धो सका
न चैन जन को दे सका . .

न साथ सबके रह सका
न संग - मुक्त हो सका .
न बैठ कर रहा कभी
न राह कोई गढ़ सका . .

न पलट भूत ला सका
न वर्तमान जी सका
न मैं भविष्य के लिए
जिन्दगी सजा सका . .

काम सब करो सही

तुम बात सब करो सही
तुम काम सब करो सही
तुम सत्य पर अड़े रहो
तुम निडर हो खड़े रहो .
तुम अनुभवी अतीत हो
तुम वर्तमान प्रतीत हो
तुम जिंदगी को साध लो
तुम धैर्य से बढे चलो .

तुम दिव्या अंश प्राण हो
तुम आत्मा महान हो
तुम पूज्य, भाग्यवान हो .
तुम चेतना महान हो
तुम इश के अवदान हो
तुम पुण्य पंथ गढ़ चलो
तुम उच्च लक्ष्य पर चलो . .

Wednesday, June 16, 2010

चाँद तुम्हारा है

तुम प्यार करो, देखो जग को
जग कितना प्यारा लगता है .

यह प्यार की दुनिया प्यारी है
यह सपनों वाली न्यारी है
मस्ती की दुनिया में आओ
देखो यह कैसी प्यारी है .

तुम बंद कोठरी में रहकर
चंदा है दूर, कहा करते .
निकालो चांदी-सी रातों में
फिर देखो चाँद तुम्हारा है .

दिल की बस्ती में सैर करो
तो हर दिलदार तुम्हारा है
झाँकों तुम जरा झरोखे से
देखो क्या मस्त नज़ारा है .

बादल की आँखों से देखो
सारा आकाश तुम्हारा है
बरसो थोडा जग की खातिर
सारा संसार तुम्हारा है .

कुर्बानी कुछ करके देखो
हर व्यक्ति तुम्हारा अपना है .
पर की खातिर जीकर देखो
जीवन क्या सुन्दर सपना है . .

SAMAY KEE SUNO PUKAAR

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

घिर रही घनी घटा
छ रहा है अन्धकार
टूट रहा जीवन तंत्र
हो रहा सतत प्रहार

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

स्वस्थ है नहीं समाज
भले रो रहे हैं हार .
दुर्जन सर चढ़े हुए
सज्जन को रहे मार .

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

मुठ्ठी भर गलत लोग
सही को किये लाचार
पाखंडी नेता गन
फैलाते भ्रष्टाचार

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

देश के जवानों सुनो
आया है नया भार
छिन्न करो मकडजाल
काँटों की यह दिवार .

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

शक्ति का करो विकाश
जन-जन में क्रांति ज्वार
लोक तंत्र सही बने
राष्ट्रहित करो विचार

समय की सुनो पुकार, जागो फिर एक बार .

BAAT BADAL JAATI HAI

समय के साथ सब चीज बदल जाती है
मौसम बदलते ही बात बदल जाती है .

रहता न एक-सा समय है किसी का
सोची हुई यंहा सब बात नहीं होती है .

धुन का जो पक्का वह धुन में रमा होता है
लक्ष्य तक पहुंचा दे जो, राह वही होती है .

बव्ह्पन, जवानी सब जीवन के मोड़ हैं
आगे बढ़ते ही सब पीछे रह जाते है .

किर्तियाँ जो रचते हम अपनी तपस्या से
वे ही हमें दुनिया में अमर कर जाती है .

यश, मान औ प्रतिष्ठा किसको न भाति है
जीवन की रागिनी भली किसे न सुहाती है . .

सूझ-बूझ साहस से अवसर अनुकूल करो
बाधाएं कुहरे-सी निश्चित छंट जाती है .

सपने को सच में बदलने का जोखिम लो
सपनों से जीवन में सुन्दरता आती है .

समय के साथ सब चीज बदल जाती है .
मौसम बदलते ही बात बदल जाती है .

AATMA HOO

आत्मा हूँ, दिब्य ज्योति से भरा हूँ .
निखरता ही नित चमकता जा रहा हूँ .
धुंध सारे छंट गये नूतन-पुराने
शुध्द हो सम्पूर्णता में मैं खड़ा हूँ . .

है अलौकिक दृश्य मेरी जिंदगी का
मैं पिता का प्यार सीधा पा रहा हूँ
बरसती पावन कृपा, फहरा  रहा हूँ
आत्मा हूँ, दिव्या ज्योति से भरा हूँ ..

मिल रही शक्ति अलौकिक आज मुझ को
संतति का प्यार सारा पा रहा हूँ.
निडर होकर घूमता हूँ मैं जगत में
जन्हा भी हूँ वंही पर मुसका रहा हूँ . .

रूप सुन्दर ले निराला जी रहा हूँ
नर से होने नारायण जा रहा हूँ .
भूत से अध्यात्म तक एकल अनुभव
त्रिगुनो से मुक्त चेतन हो गया हूँ .

तत्त्व वह जो है उसी का अंश हूँ मैं
महासागर की सुखद एक बूँद हूँ मैं
एक ऊपर शिप सहज परमात्मा है
औ यंहा आलोकमय संतान हूँ मैं . .

JANHA MAN KO ROOCHTA HAI

हम जाते हैं वंहा, जंहा मन को रुचता है .
दिल होता अनमोल, नहीं धन से मिलता है .
दिलवाले के साथ किसी का दिल मिलता है .
दिल से दिल मिल जाते ही बंधन जुड़ता है .
कोई रजा रहे, रहे वह अपने घर का
कोई ज्ञानी रहे, रहे वह अपने घर का
अहंकारी निज अहंकार में घुल मरता है .
पाखंडी से दूर दूर ही जग रहता है . .
नहीं पूछता कोई, जाये अपनी राह कंही वह
नहीं किसी की आँखों में बस पाता है वह
हर दिल में प्रीती का इकतारा बजता है
हम जाते हैं वंहा जंहा मन को रुचता है ..

WANHI MERI DUNIYA

जन्हा हूँ, रमा हूँ, वंही मेरी दुनिया
भले लोग मिल गये, भली मेरी दुनिया .

मुहब्बत का पैगाम है बस सुहाना
अच्छा न जिल्लत में जीवन बिताना .
मुहब्बत की प्यासी मिली सारी दुनिया
नहीं सबको मिलती मुहब्बत की दुनिया . .
जन्हा हूँ, रमा हूँ वंही मेरी दुनिया ..१ ..

नहीं कोई काँटों से दिल है लगता
सदा फुल पर ही है आँखे टिकता
किसे सुख न देता बहारों की दुनिया
सदा जगमगाती सितारों की दुनिया
जन्हा हूँ, रमा हूँ वंही मेरी दुनिया ..२..

सभी चाहते की मिले सुख-शांति
मिटे जिंदगी से विविध दुःख भ्रान्ति
अमन से सलोनी हमारी हो दुनिया
जन्हा भी नज़र जाये हो अपनी दुनिया
जन्हा हूँ, रमा हूँ वंही मेरी दुनिया ..३..

Tuesday, June 15, 2010

SAJAA KE RAKKHO DHARATI KO

रहो जबतक तू धरती पर
सजा के रक्खो धरती को
जो होंगे भोगने वाले
रखेंगे याद वे तुमको .

कान्हा अपने लिए कोई
कंही कुछ ले के जाता है
सजाता जिंदगी भर तन
यंही वह राख होता है . .

समय के साथ चलकर तुम
नयी धारा बहा जाओ .
पुराणी लीक से हटकर
नयी राहें बना जाओ ..

सजा दो फुल से क्यारी
लगा दो पेड़ फल वाले
हरा संसार हो सुन्दर
बसा दो लोग दिलवाले . .

चुभे जो दिल में जा सीधे
न ऐसी बात तुम बोलो .
रिझाये जो ज़माने को
मधुर वह बात तुम बोलो . .

जगत ले सीख कुछ तुम से
तू ऐसा काम कर जाओ .
बना दे कालजयी तुमको
तुम ऐसा नाम कर जाओ..

MERI RAAT MUJHE HAI BHAATI

मेरी रात मुझे है भाती .

सुबह सबेरे उठना होता
सांझ-सांझ तक खटना होता
जीवन-बोझ उठाने हेतु
भारी मिहनत करना होता

क्ष्रम - सेवा जीवन है साथी
मेरी रात मुझे है भाती .

स्नेहिल रात मुझे सहलाती
कल हेतु तैयार कराती
सुख सपनों की सेज सजाती
प्राणों में उर्जा भर जाती

नींद मुझे अच्छी है आती
मेरी रात मुझे है भाती ..

केवल अपने लिए न मरता
अपने क्ष्रम पर मुझ को ममता
क्ष्रम की महिमा बहुत समझता
दिल से क्ष्रम की पूजा करता

खुशहाली क्ष्रम से है आती .
मेरी रात मुझे है भाती . .

रात नहीं विश्राम है केवल
तारों की बारात न केवल
यह माता की गोद सुहावन
देती है सबको संजीवन

शशि किरणे अमृत है लाती
मेरी रात मुझे है भाती . .

AAJ TUM HO KAHI

आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही .

बात के सब बदल गए है अंदाज अब
कोई बीते ख्वाबों में रहता है कब ?
रात रोटी रही दिन विहँसता रहा
चाँद-तारे वंही, मन खिसकता रहा
मन की बातें सभी मन में घुलती रही
आज तुम हो कंही, और मैं हूँ कंही . .
तब तुम थे औ तेरे सभी नाज़ थे
तेरी फितरत में लिपटे सभी राज थे
रूप के जाल में तेरे कितने फंसे
कैसे-कैसे अनोखे फ़िदा लोग थे
सारे मौसम बदल गए घटा वह नहीं
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही .
बीती घड़ियाँ कभी लौट आती नहीं
याद में साड़ी बातें समाती नहीं
मिलाने वाले भी सपनो में आते नहीं
जो मिले वे गए, अब कहानी रही .

आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही.

JAUHAR JARA DIKHAO

जब तक है साँस चलती, तब तक ही जिंदगी है
सब दोस्त रिश्ते-नाते, अपनों की बंदगी है .

है समझना तो समझो यह अर्थ जिंदगी का
कुदरत का खेल सारा मोहान्ध जिंदगी का .

जब तक जमी पर तुम हो तबतक जमी तुम्हारी
दुनिया की खातिर मर लो दुनिया नहीं तुम्हारी

मरने के बाद कृतियाँ जिन्दा तुम्हे रखेगी .
पुरूषार्थ की कहानी सबको कहा करेगी . .

जब आ गए हो जग में, कुछ कर्म कर दिखाओ
जग को तो देखना है जौहर जरा दिखाओ . .

स्वप्निल अनोखी दुनिया सब लोग है अनोखे
तुम स्वप्न में विचार कर खाना कभी न धोखे . .

जीवन को कर तरंगित उफान लाते रहना
ज्वारों पर खेलना तुम भाता कभी न बनना

कोई नहीं तुम्हारा यह बात मत तू कहना .
लेकिन न साथ देंगे यह बात मन में रखना . .

PYAAR KI SARITA BAHAAU

चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
विश्व के संग डूबकर उसमे नहाऊ . .
दुश्मनी की बात धोखे से नहीं हो .
मित्रवत हो मैं गले सबको लगाऊ . .

चाहता सुन्दर चमन स्वप्निल सजाऊ
फुल ही हो फुल जग ऐसा बनाऊ .
हो सहज सुख-शांति से परिपूर्ण जीवन
कंही दुःख से मुखड़ा मैं न पाऊ . .

साम्य की शुभ भावना भर जाये जग में
तड़प हो सबके लिए सबके ह्रदय में
सब सहायक बन करे सहयोग सब को
स्वर्ण से जग को सजा सुन्दर बनाऊ . .

स्नेहमयी यह मां धरा सबके लिए है
हक़ सहज बनता यंहा सबके लिए है
गलत शोषण भाव जो उठता कंही भी
क्यों न हर हित के लिए निज पग उठाऊ . .

चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
प्यार से संसार को प्यारा बनाऊ . .

Sunday, June 13, 2010

KUCHH BAAT JINDAGI KI

भूले नहीं भुलाती कुछ बात जिंदगी की
बीती उम्र बताती कुछ बात जिंदगी की .
जज्बात लेके चलते है लोग जिंदगी में
जज्बात पर ही चलती है बात जिंदगी की . .

घटनाएँ नित अनोखी घटती है जिंदगी में
घटनाओ से ही बनती कुछ बात जिंदगी की .
सपने हज़ार लेके जीते है हसरतों में
सपनो से ही बनती कुछ बात जिंदगी की . .

अपनी ही ले कहानी सब लोग है उलझे
सुलझे नहीं सुलझती कुछ बात जिंदगी की .
फूलों का साथ कांटे तजते कभी नहीं जब
कैसे कान्हू सुमन की है सेज जिंदगी की . .

अनुकूल में मचलकर, प्रतिकूल में बिखर कर
चलती है सीधी - टेढ़ी यह नाव जिंदगी की
दरिया की वक्रधारा यात्रा कठिन बनाती
नाविक कुशल लगता तट नाव जिंदगी की . .

Saturday, June 12, 2010

SANKALP MERI JINDAGI

खेल-कौतुक में बितायी जिंदगी
आज बिन पतवार बढती जिंदगी
छोड़ कर तट बढ़ रही मंझधार में
क्या पता किस घात होगी जिंदगी . .

थाह पानी कठिन है गहराई की
नाव बढती जा रही है धार पर
निकल आया हूँ भंवर को झेलकर
अब चढ़ाई सामने है ज्वार पर ..

संभलते ही फंस गयी है जिंदगी
जोश खोकर होश में अब जिंदगी .
स्वर्ग तो इस पार बस पाया नहीं
सिरजने की चाह बिखरी जिंदगी . .

जो गया उस पार लौटा ही नहीं
क्या पता कैसी वंहा की जिंदगी?
अभी तो मैं भटकता हूँ धार में
क्या पता, तट पाएगी यह जिंदगी ..

सामने को झेलना है जिंदगी
संघर्ष से पीछे न हटना जिंदगी
धैर्य से दृष्टि लगाये लक्ष्य पर
पार जाने का सहज संकल्प मेरी जिंदगी . . http://www.blogvani.com/

Friday, June 11, 2010

JEEWAN SANGEET: SUNDAR BANA KE DEKHO

JEEWAN SANGEET: SUNDAR BANA KE DEKHO

SUNDAR BANA KE DEKHO

जीवन मिली अमानत
इसको सजा के देखो
पल पल की साधना से
सुन्दर बना के देखो . .

तुम मुस्करा के देखो
तुम गुनगुना के देखो
सुख चैन चाहते तो
कुंठा मिटा के देखो . .

अपने लिए तो मरते
सब लोग हैं यंहा पर
अन्यों के हेतु मरकर,
जीवन लुटा के देखो . .

अपना न कुछ भी तेरा
सब इश की धरोहर
जो है मिला, बहुत है.
संतोष कर के देखो. .

क्यों हाय, हाय करते
तुम रंक तो नहीं हो
जीवन अमूल्य तेरा
ऊपर उठा के देखो . .

Thursday, June 10, 2010

JEEVAN TO SUNDAR SAPNA HAI

जीवन तो सुन्दर सपना है
इसमे मीठी आस भरो तो .

नहीं असंभव कुछ भी जग में
अपने में विश्वास भरो तो
लक्ष्य प्राप्त करने की खातिर
कर्म हेतु संकल्प भरो तो . .

क्या कोई छल लेगा तुमको
क्या कोई गच्चा दे देगा
अपनी शक्ति को पहचानो
सोंचो, समझो और रखो तो .  .

नहीं शोभता रोदन करदन
दुःख से निज को मुक्त करो तो.
धीरज धर कर तुम गुलाब-सा
पुलकित सुरभित अगर खिलो तो . .

शिशु के संग शिशु बन जाओ
और युवा संग युवा बनो तो.
अन्यों के जीवन में घुलकर
अपना जीवन अगर गधो तो . .

सहज स्नेह से ह्रदय खोलकर
अपने से यदि गले लगो तो.
नहीं एकाकी जीवन दूभर
अगर जगत की सुरभि भरो तो .

जीवन तो सुन्दर सपना है
इसमे मीठी आस भरो तो . .

Wednesday, June 9, 2010

अनमोल जीवन चाहता hoo

प्यार की नगरी बसाना चाहता हूँ
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ।

चाहता मैं सज्जनों के साथ रहना
चाहता हर ओठ पर मुस्कान धरना।
मैं दुखो से त्रान पाना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

सब सुखी, सानंद हों, यह कामना है
स्नेह की वर्षा सतत, यह भावना है,
मैं तुम्हारे प्यार का वरदान पाना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

तौलते है लोग पैसे से यंहा हर चीज को
वे फलों से आंकते है बीज को।
लाभ-लोभों की घुटन से मुक्त होना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ।

अर्थ के सब दास दानाब बन रहे है
वाक् छल से मनुजता को छल रहे है।
मैं सहज इंसान होना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

मैं तुम्हारे प्यार का भूखा अकिंचन
चाहता हूँ मीन-सा एक मुक्त जीवन
मैं तुम्हारा हो संकुं, वरदान एकल चाहता हूँ।
प्यार की नगरी बसाना चाहता हूँ।

है अमा की रात

है अमा की रात तो
दीपक जलाते बढ़ चलो।
राह में है ठोकरे तो
खुद हटाते तुम चलो। १।

कब, कान्हा, फिर जिंदगी में
क्या पता कब बात होगी।
सामने जब हो अभी तो
बात खुल करते चलो। २॥

कोई संबल नहीं देगा
स्वयं संबल बन चलो। ।
साधनों की रिक्तता
संकल्प से भरते चलो। । ३। ।

योग्य जन जीता यंहा पर
स्वयं ही कुछ कर चलो।
शक्ति की पूजा यंहा पर
शक्ति अर्जन कर चलो। । ४ । ।

साधना ही जिंदगी है
साधना करते चलो।
अवगुणों का पंथ तममय
ज्योति के पथ पर चलो। । ५। ।

लक्ष्य अपना साधकर तुम
लक्ष्य पथ पर बढ़ चलो।
है अमा की रात तो
दीपक जलाते बढ़ चलो। ६ । ।

सांझ ढलती गयी

सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा।
हो गयी भोर आँखें खुली ही रही
तुम न जाने कन्हन थे की आये नहीं । ।
दर्द मेरा ह्रदय में सजा ही रहा
तेरी यादों में जीवन घुलाता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी।
दीप को मैं जला राह लखता रहा । ।
दुश्मनी कब की थी मैंने जाना नहीं
प्यार क्योंकर किया यह भी जाना नहीं
स्वप्न सारे सजाये मैं बैठा रहा
अपने आरमान को धू-धू जलाता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढाती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा। ।
राह सुनी हुई रात रोटी रही
अपने पलकों में शबनम छिपती रही
लोग आते रहे लोग जाते रहे
मौन बैठा मैं गम को छिपता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा। ।
छिपाए छिपता नहीं दर्द किससे कंहूँ
जग के जीवन में निज को रमाता रहा
छल रही जिन्दगी ढल रही आस सब
तुम न आओगे यह मन समझता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा । ।

रंग दूंगा अपने रंगों में

आओ तुम मेरे संग साथी
रंग दूंगा अपने रंगों में।
हिल-मिल जायेंगे हम दोनों।
नहीं रहेंगे दो रंगों में॥

निर्जन पथ में साथ चलेंगे
सुख-दुःख दोनों साथ सहेंगे
चाहे हम सब रहे कंही पर
लेकिन दुनिया साथ गढ़ेंगे। ।

हम अपनी-अपनी कमजोरी
कह-सुन साथी दूर करेंगे।
अपनी महिमा गरिमा शक्ति
की रक्षा हम स्वयं करेंगे। ।

एक राह के हम है राही
अलग-अलग हो भटका न जाये।
मिल जुल कर जो करे साधना
तो सपने सुन्दर हो जाये। ।

पथ के सारे शूल हटाकर
फूलों से हम पंथ सजाये।
आपस के संघर्ष मिटाकर जीवन को सुख-शांत बनायें। ।

गएँ गीत सुहावन मिलजुल
नाचें अपने सुख सपनों में।
आओ तुम मेरे संग साथी
रंग दूंगा अपने रंगों में। ।

मैं तो आया दीप जलाने

मैं तो आया दीप जलाने
तुम भी दीप जलाओ बंधू।
क्यों अँधियारा पंथ रहेगा
मिलकर दीप जलाओ बंधू। १।

अलग-थलग की बात न बोलो
मिलजुल कर चलने की सोंचो।
संघटना में शक्ति बहुत है
शक्ति प्रबल दिखलाना सोंचो। २।

हम सब राही एक राह के
मिल kar कदम बढाओ साथी।
तम पर विजय पताका फहरे
इतनी ज्योति जलाओ साथी। ३।

ले से होती जग की रचना
गृह-उपग्रह सब लए में चलते।
ताल-मेल-लए जीवन के स्वर
सर-सरिता- निर्झर सब कहते। ४।

एक लक्ष्य पर केन्द्रित होकर
अपनी शक्ति को आजमाओ।
चिंगारी में शक्ति अपरिमित
फूंक मार कर उसे जगाओ। ५।

मिलन गीत गाने की बेला
समता का संगीत सुनाओ।
क्यों अँधियारा पंथ रहेगा
मिलकर बंधू दीप जलाओ। ६।

जीवन संगीत सुनाता हूँ

जीवन संगीत सुनाता हूँ
हर पल, हर क्षण कुछ गता हूँ।
मेरी अपनी है रह अलग
मैं सुंदर स्वप्न सजाता हूँ। ।
मेरे पथ का साथी कोई
शुभ सपनो वाला ही होगा
मेरे जीवन का सहयोगी
कुछ करनेवाला ही होगा। ।
सुख-दुःख के साथी मुझे प्रिये
उनसे ही उर्जा पाता हूँ।
मैं जन सेवा का वर्ती परम
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।
मेरा न किसी से स्वार्थ कंही
कोई न पराया है मेरा।
सबके संकट का साथी हूँ।
सबसे अपनापन है मेरा। ।
सबके सुख हेतु है जीवन
तम में मैं दीप जलाता हूँ।
हर पल मुख पर मुस्कान लिए
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।
मेरी मानो या मत मानो
जो शुभ है वही सुनाता हूँ।
हर पल हर क्षण कुछ गता हूँ
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।