JEEWAN SANGEET

Saturday, June 12, 2010

SANKALP MERI JINDAGI

खेल-कौतुक में बितायी जिंदगी
आज बिन पतवार बढती जिंदगी
छोड़ कर तट बढ़ रही मंझधार में
क्या पता किस घात होगी जिंदगी . .

थाह पानी कठिन है गहराई की
नाव बढती जा रही है धार पर
निकल आया हूँ भंवर को झेलकर
अब चढ़ाई सामने है ज्वार पर ..

संभलते ही फंस गयी है जिंदगी
जोश खोकर होश में अब जिंदगी .
स्वर्ग तो इस पार बस पाया नहीं
सिरजने की चाह बिखरी जिंदगी . .

जो गया उस पार लौटा ही नहीं
क्या पता कैसी वंहा की जिंदगी?
अभी तो मैं भटकता हूँ धार में
क्या पता, तट पाएगी यह जिंदगी ..

सामने को झेलना है जिंदगी
संघर्ष से पीछे न हटना जिंदगी
धैर्य से दृष्टि लगाये लक्ष्य पर
पार जाने का सहज संकल्प मेरी जिंदगी . . http://www.blogvani.com/