JEEWAN SANGEET

Saturday, June 19, 2010

आया हूँ अपने गाँव में

बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ, अपने गाँव में .
स्वच्छ हवा से हर्षित है मन
हूँ बरगद की छाओं में ..

नहीं उमस से मन घबराता
सहज हरापन मन को भाता
काले बादल उमड़-घुमड़कर
मुझे रिझाते छाओं में . .

सतरंगा सुन्दर पनसोखा
दिखलाता है दृश्य अनोखा
कदवा किये हुए खेतों में
रोपनी होती गाँव में .
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में . .

फर्दो तट का दृश्य सुहाना
तैर-तैर कर नित्य नहाना
तोड़ मकई के बाल खेत से
ओरहा खाना गाँव में .
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में . .

खेल कबड्डी, चिक्का, कुश्ती
आपस की वह धींगा मुश्ती
सुखद चांदनी, झिन्झरी जल में
याद आ रही गाँव में
बहुत दिनों के बाद आज
आया हूँ अपने गाँव में

जगत साथ देगा

ज़माना सदा ही रहा साहसी का
बढ़ो कर के हिम्मत, जगत साथ देगा .

पहले तू अपनी कहो खुलके मंशा
समझ मंशा जगत साथ देगा .
अगर लोकमंगल की मंशा तुम्हारी
तो आगे बढ़ने में जग साथ देगा . .

न झल्को भाई तू अपनी लाचारी
दिखलाओ क्षमता जगत साथ देगा . .
चलता रहेगा पकड़ धार जग यह
समय का विहंगम भी उड़ता रहेगा .

अगर है नयी कल्पना जिंदगी की
जगत साथ चलने को तत्पर रहेगा . .
गधो कोई सपना मनुजता का नूतन
बढ़ो करके साहस जगत साथ देगा . .

नहीं चला मैं उन राहों पर

अनचाहे पथ का मैं राही
आज भला क्या, कभी नहीं था .
नहीं चला मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .

भूल गया मैं उन राहों को
जिनपर थी मुस्कान न बिखरी
लौट नहीं ताका उस घर पर
जिस पर कोई किरण न निखरी . .

व्यर्थ कंही पर समय बिताना
छोटी बातों में फंस जाना
मेरे लिए कान्हा था संभव
डूब भावना में बह जाना . .

सदा सचेत रहा जीवन में
गया वंही कर्तब्य जंहा था
उनसे दूर रहा जीवन भर
जिन्हें समय का ज्ञान नहीं था . .

कुछ उल्लेख्य करू जीवन में
मेरा बस मनतब्य यही था
चला नहीं मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .

Friday, June 18, 2010

आज जो मैं लिख रहा

आज जो मैं लिख रहा हूँ, जान लो
वह अमर कल भी, हमेशा ही रहेगा . .

इस मही पर सृजन पथ जबतक रहेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .
हर प्रलय को सृजन ही देगी चुनौती
सृष्टि के संग क्रम यही चलता रहेगा . .

प्रलय की चिंता न कोई भी करे
सृजन का यह चक्र चलता ही रहे
भाव-सरिता को बहा सागर बना दो .
पत्थरों को फोड़कर निर्झर बहा दो . .

राह से गुमराह करते लोग मिलते ही रहेंगे
और रोड़े भी निरंतर राह में मिलते रहेंगे
किन्तु सर्जक स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .
साहसी निज स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .

लेखनी से बांध गया नाता सुनहरा
यह दिनोदिन हो रहा है सतत गहरा .
जिंदगी के साथ लेखन भी चलेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .

मैं अकेला हो गया हूँ

रो रहा क्यों व्यर्थ रे मन
कौन अपना है यंहा पर .
मिट गयी हस्ती बड़ों की
है हमारी क्या यंहा पर .

सबको अपनी ही पड़ी है
चल रहे सब भावना में
स्वप्न सब बिखरे पड़े जब
है कान्हा कुछ कल्पना में . .

स्वर्ग-सुख के मोह में आ
नरक में मैं बस गया हूँ .
आज जग के जाल में कुछ
बेतरह मैं फंस गया हूँ . .

नाव तो मंझधार में फंस
धार की आश्रित हुई  है
दूर दोनों तट हुए है
और मंजिल खो गयी है .

कौन देगा साथ मेरा
यह प्रबल चिंता सताती . .
मैं अकेला हो गया हूँ
अब नहीं विश्वास थाती . .

घर मेरा इतिहास होगा

हो अकेला खो गया हूँ
शहर के भीषण भवंर में .
मन नहीं लगता यंहा पर
कैद हो रोता नगर में . .

चाहकर न लौट सकता
ग्राम जीवन पा न सकता
खड़ा पुरखों का महल
पर हूँ अकेला जा न सकता . .

भूत का कहकर बसेरा
कोई भी रहता न घर में .
दर्शनीय था कभी जो
आज बदला खंडहर में . .

गिर पड़ेगा,   देह होगा
कोई कब्ज़ा कर रहेगा
याद में बस शेष रहकर
घर मेरा इतिहास होगा . .

Thursday, June 17, 2010

मेरा सपना

मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा .

अलग-थलग की बात कभी न होगी
छल-प्रपंच की बातें बुरी न होगी
सब होंगे इंसान न अंतर होगा .
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . १ . .

मंदिर-मस्जिद अलग कभी न होगा
इश्वर हित संघर्ष न मन में होगा
बाहर भीतर भेद न कोई होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . २ . .

होगी एक ही शिक्ष सुन्दर सबकी
एकरूप मानवता होगी सबकी
बात-बात पर झगडा कभी न होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . . ३ . .

जब सब उर में प्यार छलक आएगा
स्वार्थों का सब द्वीप डूब जायेगा
जगत कुटुंब रूप एक तब होगा
मेरा सपना पूर्ण कभी तो होगा . .