JEEWAN SANGEET

Friday, June 18, 2010

घर मेरा इतिहास होगा

हो अकेला खो गया हूँ
शहर के भीषण भवंर में .
मन नहीं लगता यंहा पर
कैद हो रोता नगर में . .

चाहकर न लौट सकता
ग्राम जीवन पा न सकता
खड़ा पुरखों का महल
पर हूँ अकेला जा न सकता . .

भूत का कहकर बसेरा
कोई भी रहता न घर में .
दर्शनीय था कभी जो
आज बदला खंडहर में . .

गिर पड़ेगा,   देह होगा
कोई कब्ज़ा कर रहेगा
याद में बस शेष रहकर
घर मेरा इतिहास होगा . .

2 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति...एक टीस को उजागर करती हुई

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  2. Apne sahari jeevn ki saachi peda likhi hai.Ham sabhi kheton ki muderen tod kar aye hain aur concrete ke jangle mein phans gaye hain.sarthak kavita hai bhai.

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