JEEWAN SANGEET

Friday, June 18, 2010

आज जो मैं लिख रहा

आज जो मैं लिख रहा हूँ, जान लो
वह अमर कल भी, हमेशा ही रहेगा . .

इस मही पर सृजन पथ जबतक रहेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .
हर प्रलय को सृजन ही देगी चुनौती
सृष्टि के संग क्रम यही चलता रहेगा . .

प्रलय की चिंता न कोई भी करे
सृजन का यह चक्र चलता ही रहे
भाव-सरिता को बहा सागर बना दो .
पत्थरों को फोड़कर निर्झर बहा दो . .

राह से गुमराह करते लोग मिलते ही रहेंगे
और रोड़े भी निरंतर राह में मिलते रहेंगे
किन्तु सर्जक स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .
साहसी निज स्वप्न को साकार करता ही रहेगा .

लेखनी से बांध गया नाता सुनहरा
यह दिनोदिन हो रहा है सतत गहरा .
जिंदगी के साथ लेखन भी चलेगा
व्यास का अवतार होता ही रहेगा .

मैं अकेला हो गया हूँ

रो रहा क्यों व्यर्थ रे मन
कौन अपना है यंहा पर .
मिट गयी हस्ती बड़ों की
है हमारी क्या यंहा पर .

सबको अपनी ही पड़ी है
चल रहे सब भावना में
स्वप्न सब बिखरे पड़े जब
है कान्हा कुछ कल्पना में . .

स्वर्ग-सुख के मोह में आ
नरक में मैं बस गया हूँ .
आज जग के जाल में कुछ
बेतरह मैं फंस गया हूँ . .

नाव तो मंझधार में फंस
धार की आश्रित हुई  है
दूर दोनों तट हुए है
और मंजिल खो गयी है .

कौन देगा साथ मेरा
यह प्रबल चिंता सताती . .
मैं अकेला हो गया हूँ
अब नहीं विश्वास थाती . .

घर मेरा इतिहास होगा

हो अकेला खो गया हूँ
शहर के भीषण भवंर में .
मन नहीं लगता यंहा पर
कैद हो रोता नगर में . .

चाहकर न लौट सकता
ग्राम जीवन पा न सकता
खड़ा पुरखों का महल
पर हूँ अकेला जा न सकता . .

भूत का कहकर बसेरा
कोई भी रहता न घर में .
दर्शनीय था कभी जो
आज बदला खंडहर में . .

गिर पड़ेगा,   देह होगा
कोई कब्ज़ा कर रहेगा
याद में बस शेष रहकर
घर मेरा इतिहास होगा . .