रहो जबतक तू धरती पर
सजा के रक्खो धरती को
जो होंगे भोगने वाले
रखेंगे याद वे तुमको .
कान्हा अपने लिए कोई
कंही कुछ ले के जाता है
सजाता जिंदगी भर तन
यंही वह राख होता है . .
समय के साथ चलकर तुम
नयी धारा बहा जाओ .
पुराणी लीक से हटकर
नयी राहें बना जाओ ..
सजा दो फुल से क्यारी
लगा दो पेड़ फल वाले
हरा संसार हो सुन्दर
बसा दो लोग दिलवाले . .
चुभे जो दिल में जा सीधे
न ऐसी बात तुम बोलो .
रिझाये जो ज़माने को
मधुर वह बात तुम बोलो . .
जगत ले सीख कुछ तुम से
तू ऐसा काम कर जाओ .
बना दे कालजयी तुमको
तुम ऐसा नाम कर जाओ..
JEEWAN SANGEET
Tuesday, June 15, 2010
MERI RAAT MUJHE HAI BHAATI
मेरी रात मुझे है भाती .
सुबह सबेरे उठना होता
सांझ-सांझ तक खटना होता
जीवन-बोझ उठाने हेतु
भारी मिहनत करना होता
क्ष्रम - सेवा जीवन है साथी
मेरी रात मुझे है भाती .
स्नेहिल रात मुझे सहलाती
कल हेतु तैयार कराती
सुख सपनों की सेज सजाती
प्राणों में उर्जा भर जाती
नींद मुझे अच्छी है आती
मेरी रात मुझे है भाती ..
केवल अपने लिए न मरता
अपने क्ष्रम पर मुझ को ममता
क्ष्रम की महिमा बहुत समझता
दिल से क्ष्रम की पूजा करता
खुशहाली क्ष्रम से है आती .
मेरी रात मुझे है भाती . .
रात नहीं विश्राम है केवल
तारों की बारात न केवल
यह माता की गोद सुहावन
देती है सबको संजीवन
शशि किरणे अमृत है लाती
मेरी रात मुझे है भाती . .
सुबह सबेरे उठना होता
सांझ-सांझ तक खटना होता
जीवन-बोझ उठाने हेतु
भारी मिहनत करना होता
क्ष्रम - सेवा जीवन है साथी
मेरी रात मुझे है भाती .
स्नेहिल रात मुझे सहलाती
कल हेतु तैयार कराती
सुख सपनों की सेज सजाती
प्राणों में उर्जा भर जाती
नींद मुझे अच्छी है आती
मेरी रात मुझे है भाती ..
केवल अपने लिए न मरता
अपने क्ष्रम पर मुझ को ममता
क्ष्रम की महिमा बहुत समझता
दिल से क्ष्रम की पूजा करता
खुशहाली क्ष्रम से है आती .
मेरी रात मुझे है भाती . .
रात नहीं विश्राम है केवल
तारों की बारात न केवल
यह माता की गोद सुहावन
देती है सबको संजीवन
शशि किरणे अमृत है लाती
मेरी रात मुझे है भाती . .
AAJ TUM HO KAHI
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही .
बात के सब बदल गए है अंदाज अब
कोई बीते ख्वाबों में रहता है कब ?
रात रोटी रही दिन विहँसता रहा
चाँद-तारे वंही, मन खिसकता रहा
मन की बातें सभी मन में घुलती रही
आज तुम हो कंही, और मैं हूँ कंही . .
तब तुम थे औ तेरे सभी नाज़ थे
तेरी फितरत में लिपटे सभी राज थे
रूप के जाल में तेरे कितने फंसे
कैसे-कैसे अनोखे फ़िदा लोग थे
सारे मौसम बदल गए घटा वह नहीं
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही .
बीती घड़ियाँ कभी लौट आती नहीं
याद में साड़ी बातें समाती नहीं
मिलाने वाले भी सपनो में आते नहीं
जो मिले वे गए, अब कहानी रही .
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही.
बात के सब बदल गए है अंदाज अब
कोई बीते ख्वाबों में रहता है कब ?
रात रोटी रही दिन विहँसता रहा
चाँद-तारे वंही, मन खिसकता रहा
मन की बातें सभी मन में घुलती रही
आज तुम हो कंही, और मैं हूँ कंही . .
तब तुम थे औ तेरे सभी नाज़ थे
तेरी फितरत में लिपटे सभी राज थे
रूप के जाल में तेरे कितने फंसे
कैसे-कैसे अनोखे फ़िदा लोग थे
सारे मौसम बदल गए घटा वह नहीं
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही .
बीती घड़ियाँ कभी लौट आती नहीं
याद में साड़ी बातें समाती नहीं
मिलाने वाले भी सपनो में आते नहीं
जो मिले वे गए, अब कहानी रही .
आज तुम हो कंही और मैं हूँ कंही.
JAUHAR JARA DIKHAO
जब तक है साँस चलती, तब तक ही जिंदगी है
सब दोस्त रिश्ते-नाते, अपनों की बंदगी है .
है समझना तो समझो यह अर्थ जिंदगी का
कुदरत का खेल सारा मोहान्ध जिंदगी का .
जब तक जमी पर तुम हो तबतक जमी तुम्हारी
दुनिया की खातिर मर लो दुनिया नहीं तुम्हारी
मरने के बाद कृतियाँ जिन्दा तुम्हे रखेगी .
पुरूषार्थ की कहानी सबको कहा करेगी . .
जब आ गए हो जग में, कुछ कर्म कर दिखाओ
जग को तो देखना है जौहर जरा दिखाओ . .
स्वप्निल अनोखी दुनिया सब लोग है अनोखे
तुम स्वप्न में विचार कर खाना कभी न धोखे . .
जीवन को कर तरंगित उफान लाते रहना
ज्वारों पर खेलना तुम भाता कभी न बनना
कोई नहीं तुम्हारा यह बात मत तू कहना .
लेकिन न साथ देंगे यह बात मन में रखना . .
सब दोस्त रिश्ते-नाते, अपनों की बंदगी है .
है समझना तो समझो यह अर्थ जिंदगी का
कुदरत का खेल सारा मोहान्ध जिंदगी का .
जब तक जमी पर तुम हो तबतक जमी तुम्हारी
दुनिया की खातिर मर लो दुनिया नहीं तुम्हारी
मरने के बाद कृतियाँ जिन्दा तुम्हे रखेगी .
पुरूषार्थ की कहानी सबको कहा करेगी . .
जब आ गए हो जग में, कुछ कर्म कर दिखाओ
जग को तो देखना है जौहर जरा दिखाओ . .
स्वप्निल अनोखी दुनिया सब लोग है अनोखे
तुम स्वप्न में विचार कर खाना कभी न धोखे . .
जीवन को कर तरंगित उफान लाते रहना
ज्वारों पर खेलना तुम भाता कभी न बनना
कोई नहीं तुम्हारा यह बात मत तू कहना .
लेकिन न साथ देंगे यह बात मन में रखना . .
PYAAR KI SARITA BAHAAU
चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
विश्व के संग डूबकर उसमे नहाऊ . .
दुश्मनी की बात धोखे से नहीं हो .
मित्रवत हो मैं गले सबको लगाऊ . .
चाहता सुन्दर चमन स्वप्निल सजाऊ
फुल ही हो फुल जग ऐसा बनाऊ .
हो सहज सुख-शांति से परिपूर्ण जीवन
कंही दुःख से मुखड़ा मैं न पाऊ . .
साम्य की शुभ भावना भर जाये जग में
तड़प हो सबके लिए सबके ह्रदय में
सब सहायक बन करे सहयोग सब को
स्वर्ण से जग को सजा सुन्दर बनाऊ . .
स्नेहमयी यह मां धरा सबके लिए है
हक़ सहज बनता यंहा सबके लिए है
गलत शोषण भाव जो उठता कंही भी
क्यों न हर हित के लिए निज पग उठाऊ . .
चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
प्यार से संसार को प्यारा बनाऊ . .
विश्व के संग डूबकर उसमे नहाऊ . .
दुश्मनी की बात धोखे से नहीं हो .
मित्रवत हो मैं गले सबको लगाऊ . .
चाहता सुन्दर चमन स्वप्निल सजाऊ
फुल ही हो फुल जग ऐसा बनाऊ .
हो सहज सुख-शांति से परिपूर्ण जीवन
कंही दुःख से मुखड़ा मैं न पाऊ . .
साम्य की शुभ भावना भर जाये जग में
तड़प हो सबके लिए सबके ह्रदय में
सब सहायक बन करे सहयोग सब को
स्वर्ण से जग को सजा सुन्दर बनाऊ . .
स्नेहमयी यह मां धरा सबके लिए है
हक़ सहज बनता यंहा सबके लिए है
गलत शोषण भाव जो उठता कंही भी
क्यों न हर हित के लिए निज पग उठाऊ . .
चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
प्यार से संसार को प्यारा बनाऊ . .
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