चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
विश्व के संग डूबकर उसमे नहाऊ . .
दुश्मनी की बात धोखे से नहीं हो .
मित्रवत हो मैं गले सबको लगाऊ . .
चाहता सुन्दर चमन स्वप्निल सजाऊ
फुल ही हो फुल जग ऐसा बनाऊ .
हो सहज सुख-शांति से परिपूर्ण जीवन
कंही दुःख से मुखड़ा मैं न पाऊ . .
साम्य की शुभ भावना भर जाये जग में
तड़प हो सबके लिए सबके ह्रदय में
सब सहायक बन करे सहयोग सब को
स्वर्ण से जग को सजा सुन्दर बनाऊ . .
स्नेहमयी यह मां धरा सबके लिए है
हक़ सहज बनता यंहा सबके लिए है
गलत शोषण भाव जो उठता कंही भी
क्यों न हर हित के लिए निज पग उठाऊ . .
चाहता हूँ प्यार की सरिता बहाऊ .
प्यार से संसार को प्यारा बनाऊ . .
sure
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