JEEWAN SANGEET

Wednesday, June 9, 2010

अनमोल जीवन चाहता hoo

प्यार की नगरी बसाना चाहता हूँ
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ।

चाहता मैं सज्जनों के साथ रहना
चाहता हर ओठ पर मुस्कान धरना।
मैं दुखो से त्रान पाना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

सब सुखी, सानंद हों, यह कामना है
स्नेह की वर्षा सतत, यह भावना है,
मैं तुम्हारे प्यार का वरदान पाना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

तौलते है लोग पैसे से यंहा हर चीज को
वे फलों से आंकते है बीज को।
लाभ-लोभों की घुटन से मुक्त होना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ।

अर्थ के सब दास दानाब बन रहे है
वाक् छल से मनुजता को छल रहे है।
मैं सहज इंसान होना चाहता हूँ।
मैं सही अनमोल जीवन चाहता हूँ। ।

मैं तुम्हारे प्यार का भूखा अकिंचन
चाहता हूँ मीन-सा एक मुक्त जीवन
मैं तुम्हारा हो संकुं, वरदान एकल चाहता हूँ।
प्यार की नगरी बसाना चाहता हूँ।

है अमा की रात

है अमा की रात तो
दीपक जलाते बढ़ चलो।
राह में है ठोकरे तो
खुद हटाते तुम चलो। १।

कब, कान्हा, फिर जिंदगी में
क्या पता कब बात होगी।
सामने जब हो अभी तो
बात खुल करते चलो। २॥

कोई संबल नहीं देगा
स्वयं संबल बन चलो। ।
साधनों की रिक्तता
संकल्प से भरते चलो। । ३। ।

योग्य जन जीता यंहा पर
स्वयं ही कुछ कर चलो।
शक्ति की पूजा यंहा पर
शक्ति अर्जन कर चलो। । ४ । ।

साधना ही जिंदगी है
साधना करते चलो।
अवगुणों का पंथ तममय
ज्योति के पथ पर चलो। । ५। ।

लक्ष्य अपना साधकर तुम
लक्ष्य पथ पर बढ़ चलो।
है अमा की रात तो
दीपक जलाते बढ़ चलो। ६ । ।

सांझ ढलती गयी

सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा।
हो गयी भोर आँखें खुली ही रही
तुम न जाने कन्हन थे की आये नहीं । ।
दर्द मेरा ह्रदय में सजा ही रहा
तेरी यादों में जीवन घुलाता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी।
दीप को मैं जला राह लखता रहा । ।
दुश्मनी कब की थी मैंने जाना नहीं
प्यार क्योंकर किया यह भी जाना नहीं
स्वप्न सारे सजाये मैं बैठा रहा
अपने आरमान को धू-धू जलाता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढाती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा। ।
राह सुनी हुई रात रोटी रही
अपने पलकों में शबनम छिपती रही
लोग आते रहे लोग जाते रहे
मौन बैठा मैं गम को छिपता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा। ।
छिपाए छिपता नहीं दर्द किससे कंहूँ
जग के जीवन में निज को रमाता रहा
छल रही जिन्दगी ढल रही आस सब
तुम न आओगे यह मन समझता रहा
सांझ ढलती गयी रात बढती गयी
दीप को मैं जला राह लखता रहा । ।

रंग दूंगा अपने रंगों में

आओ तुम मेरे संग साथी
रंग दूंगा अपने रंगों में।
हिल-मिल जायेंगे हम दोनों।
नहीं रहेंगे दो रंगों में॥

निर्जन पथ में साथ चलेंगे
सुख-दुःख दोनों साथ सहेंगे
चाहे हम सब रहे कंही पर
लेकिन दुनिया साथ गढ़ेंगे। ।

हम अपनी-अपनी कमजोरी
कह-सुन साथी दूर करेंगे।
अपनी महिमा गरिमा शक्ति
की रक्षा हम स्वयं करेंगे। ।

एक राह के हम है राही
अलग-अलग हो भटका न जाये।
मिल जुल कर जो करे साधना
तो सपने सुन्दर हो जाये। ।

पथ के सारे शूल हटाकर
फूलों से हम पंथ सजाये।
आपस के संघर्ष मिटाकर जीवन को सुख-शांत बनायें। ।

गएँ गीत सुहावन मिलजुल
नाचें अपने सुख सपनों में।
आओ तुम मेरे संग साथी
रंग दूंगा अपने रंगों में। ।

मैं तो आया दीप जलाने

मैं तो आया दीप जलाने
तुम भी दीप जलाओ बंधू।
क्यों अँधियारा पंथ रहेगा
मिलकर दीप जलाओ बंधू। १।

अलग-थलग की बात न बोलो
मिलजुल कर चलने की सोंचो।
संघटना में शक्ति बहुत है
शक्ति प्रबल दिखलाना सोंचो। २।

हम सब राही एक राह के
मिल kar कदम बढाओ साथी।
तम पर विजय पताका फहरे
इतनी ज्योति जलाओ साथी। ३।

ले से होती जग की रचना
गृह-उपग्रह सब लए में चलते।
ताल-मेल-लए जीवन के स्वर
सर-सरिता- निर्झर सब कहते। ४।

एक लक्ष्य पर केन्द्रित होकर
अपनी शक्ति को आजमाओ।
चिंगारी में शक्ति अपरिमित
फूंक मार कर उसे जगाओ। ५।

मिलन गीत गाने की बेला
समता का संगीत सुनाओ।
क्यों अँधियारा पंथ रहेगा
मिलकर बंधू दीप जलाओ। ६।

जीवन संगीत सुनाता हूँ

जीवन संगीत सुनाता हूँ
हर पल, हर क्षण कुछ गता हूँ।
मेरी अपनी है रह अलग
मैं सुंदर स्वप्न सजाता हूँ। ।
मेरे पथ का साथी कोई
शुभ सपनो वाला ही होगा
मेरे जीवन का सहयोगी
कुछ करनेवाला ही होगा। ।
सुख-दुःख के साथी मुझे प्रिये
उनसे ही उर्जा पाता हूँ।
मैं जन सेवा का वर्ती परम
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।
मेरा न किसी से स्वार्थ कंही
कोई न पराया है मेरा।
सबके संकट का साथी हूँ।
सबसे अपनापन है मेरा। ।
सबके सुख हेतु है जीवन
तम में मैं दीप जलाता हूँ।
हर पल मुख पर मुस्कान लिए
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।
मेरी मानो या मत मानो
जो शुभ है वही सुनाता हूँ।
हर पल हर क्षण कुछ गता हूँ
जीवन संगीत सुनाता हूँ। ।