अनचाहे पथ का मैं राही
आज भला क्या, कभी नहीं था .
नहीं चला मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .
भूल गया मैं उन राहों को
जिनपर थी मुस्कान न बिखरी
लौट नहीं ताका उस घर पर
जिस पर कोई किरण न निखरी . .
व्यर्थ कंही पर समय बिताना
छोटी बातों में फंस जाना
मेरे लिए कान्हा था संभव
डूब भावना में बह जाना . .
सदा सचेत रहा जीवन में
गया वंही कर्तब्य जंहा था
उनसे दूर रहा जीवन भर
जिन्हें समय का ज्ञान नहीं था . .
कुछ उल्लेख्य करू जीवन में
मेरा बस मनतब्य यही था
चला नहीं मैं उन राहों पर
जो छूता गंतब्य नहीं था . .
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